डॉक्टर को भगवान का एक रूप माना जाता है और मानना भी चाहिए. क्योंकि डॉक्टर ही है जो मरीज़ो का इलाज कर उन्हे एक नई जिंदगी देते है. लेकिन जब डॉक्टर या उनके स्टाफ़ की एक लापरवाही से मरीज की जान चली जायें वो असहनीय है. ये पोस्ट ऐसे ही एक लापरवाही से जुड़ा है. मुद्दा भले ही पुराना हो लेकिन लापरवाही करने वालों को सबक मिल जाए. यही इस पोस्ट का मकसद है.

21 अगस्त को 22 साल की अंकिता के पेट में दर्द सा उठना लगा था. अंकिता गर्भवती भी थी तो जाहिर सी बात थी वो अपने बच्चे की ज्यादा चिंता करते हुये अपने पापा मियां राम के साथ हॉस्पिटल जाती है. राेहड़ू के संजीवनी अस्पताल में बताया गया कि अंकिता के यूट्रस ट्यूब फट गई है और खून भी कम है. इसलिए इसे शिमला ले जाना पड़ेगा.
इस बात पर अंकिता के पापा ने अस्पताल वालों से बोला कि इलाज यहां भी तो हो सकता है तो डॉक्टरों ने जवाब दिया कि बीमारी सिर्फ यही नहीं और भी है. अंकिता एचआईवी पॉजिटिव है. ये सुनकर मियां राम के चेहरे की हवाइयाँ उड गयी. अंकिता ने भी डॉक्टरों की वो बात सुन ली थी तो बेहताशा रोने लगी. इस हालत में मियां राम अपनी बच्ची को लेकर शिमला के निकाल गए.
हॉस्पिटल स्टाफ़ का बर्ताव कैसा रहा?
शिमला के कमला नेहरू अस्पताल में अंकिता को भर्ती कराया और यहां उसके यूट्रस का ऑपरेशन हो गया. लेकिन दोबारा टेस्ट कराने के बजाय डॉक्टरों ने संजीवनी अस्पताल की रिपोर्ट को ही सही मान लिया. नर्सें आकर पूछती थीं कि आखिर ऐसा क्या काम करती हो, जो ये रोग लगवा लिया. अंकिता इस बात पर कोई जवाब ना देकर केवल रोती रहती. आख़िर वो कहती भी क्या, जब उसको ऐसा रोग हुया ही नहीं था.
जब अस्पताल में किसी को पता चलता कि फलां बैड पर एचआईवी पॉज़िटिव लड़की है तो सब अंकिता को ऐसे घूरते जैसे उसने कोई गुनाह किया हो. हमेशा यही सुन व देख कर अंकिता अंदर ही अंदर रोने लगती. कहती कुछ भी नहीं थी. एक दिन अचानक से वो लंबी लंबी सांसें लेने लग गयी.

इसके बाद मियां राम ने उसके पति हरीश को 22 अगस्त को शिमला बुला लिया. अंकिता की हालत बद से बदतर हुये जा रही थी. वो कोमा में चली गयी थी. अंकिता को शिमला के ही इंदिरा गांधी मेडिकल कॉलेज शिफ्ट कर दिया गया. 23 अगस्त काे अंकिता और हरीश, दोनों के एचआईवी से जुड़े टेस्ट हुए. तब जाकर जांच में पता चला, दोनों नॉर्मल थे. 21 अगस्त की सुबह 11 बजे वाली पहली रिपोर्ट, जो संजीवनी अस्पताल ने बनाई थी, से लेकर 23 अगस्त की शाम वाली आखिरी रिपोर्ट, जो इन्दिरा गांधी मेडिकल कॉलेज ने बनाई थी, तक अंकिता गुनाहगार बनी रही. कोमा में चले जाने के कुछ दिन बाद ही वो दुनिया को छोड़ कर चली गई.
पति का क्या कहना है?
अंकिता के पति हरीश कहते है कि उन दोनों ने लव मैरिज की थी. पिछले ही साल दिसंबर में शादी हुई थी. वो 22 अगस्त को अंकिता के पास पहुंचा और पास में पड़े स्टूल पर बैठ गया. अंकिता ने हरीश के कंधे पर सिर रख दिया. अचानक नर्सिंग स्टाफ आया और अंकिता के सामने ही हरीश से कहा कि आपको पता नहीं, आपकी वाइफ एचआईवी पॉजिटिव है. आपके भी टेस्ट होंगे. अंकिता के सामने ही उनके परिवार जन से कहा जाता कि अंकिता के कपड़े अलग रख दो और उन्हें भी ग्लव्स पहना दिए गए थे.

कमला नेहरू अस्पताल में नर्सिंग स्टाफ़ द्वारा तरह-तरह के बेहूदे सवाल किए गए. 23 अगस्त को अंकिता जब IGMC रैफर की गई तो वहां के डॉक्टर ने सहारा दिया. यहीं पर दोबारा टेस्ट हुए तो सच सामने आया, पर झूठी रिपोर्ट ने अंकिता की जान ले ली. हरीश तो अब भी सोचते है, अगर सच सामने नहीं आता तो उन दोनों परिवारों का तो जीना मुश्किल ही हो जाता. कौन उनसे रिश्ते रखता. बच्चों की शादियां कैसे होतीं?
अधिकारी का क्या कहना है?
शिमला के CMO डाॅ. नीरज मित्तल कहते है कि स्वास्थ्य विभाग के पास केवल डाॅक्टर या फार्मासिस्ट की डिग्री की जांच करने की ही पावर है. रिपाेर्ट गलत दे दी, ऐसे मामलों में हम सिर्फ चेतावनी दे सकते हैं. पीड़ित परिवार काे काेर्ट का दरवाजा खटखटाना ही पड़ेगा. कोर्ट जांच के आदेश दे सकता है.
एक टाइपो मिस्टेक की वजह से एक हँसती-खेलती युवती ने अपना दम तोड़ दिया. दूसरे अस्पताल ने भी पहले से बनी रिपोर्ट को सच मान लेने से युवती को मौत के मुंह में धकेल दिया. नर्स स्टाफ़ से अपने मरीज़ो के साथ बेरुखी वाला बर्ताव करना भी अंकिता के मौत का कारण बना. मरीज़ केवल मरीज़ होता है उनसे एक ही तरीके का बर्ताव करना चाहिए. रोगो के हिसाब से मरीज़ो को टार्गेट नहीं करना चाहिए.
अब देखना ये है कि अंकिता के परिवार वाले उन लापरवाह लोगों के खिलाफ एक्शन लेते है या नहीं?
