परिस्थितियाँ बिगड़ने के बाद जो इंसान खड़ा होकर उससे लड़ता है वो ही इंसान आगे चल कर अपने जीवन में बहुत कुछ कर पाता है. जिंदगी को एक नई दिशा देने में वो इंसान फिर कभी गुरेजता नहीं है. आज का ये पोस्ट एक ऐसे शख़्स की कहानी बताएगा जो बदहाली से ऊपर उठकर नामचीन ज़िंदगी जीता है.

साल था 1950. तारीख थी 18 अक्टूबर. इस दिन राजेश पूरी और तारा देवी के घर अंबाला में एक नन्ही सी जान की किलकारी गूंजी. किलकारी गूंजने के बाद घरवालों ने आपस में मिठाइयाँ बांटी. नन्ही सी जान का नाम ओमप्रकाश पुरी रखा गया. ओमप्रकाश पुरी के पापा ब्रिटिश इंडिया में एक सैनिक थे और रेलवे में काम करते थे. उनका एक भाई वेद प्रकाश पुरी है. हालांकि इनके जन्मदिन को लेकर असमंजस ही रहा है क्योंकि उनकी माँ ने कहा था कि ओमप्रकाश दशहरे से 2 दिन पहले हुये थे तो ओमप्रकाश ने बड़े होकर 1950 का कलेंडर देख कर अपने जन्मदिन की तारीख रखी.
सब कुछ अच्छा चल रहा था लेकिन भगवान को कुछ ओर ही मंजूर था. पापा राजेश रेलवे में नौकरी करते थे उनके ऊपर सीमेंट चोरी करने का आरोप लगा जिसके चलते उन्हे जेल में बंद कर दिया गया. जब किसी के घर से कमाने वाला सदस्य निकल या मर जाता है तब वो परिवार दर-दर की ठोकरे खाने लग जाता है. यही हाल ओमप्रकाश के घर का हुया.
ओमप्रकाश के परिवार के ऊपर से छत निकल चुकी थी. परिवार का पेट भरने के लिए ओमप्रकाश के भाई वेद प्रकाश ने रेलवे में कूली का काम करना शुरू कर दिया और खुद चाय की दुकान पर काम करने लगे थे. रेलवे की पटरियों से कोयला भी बीनकर लाया करते थे.

ऐसे काम करके ओमप्रकाश ने अपनी पढ़ाई सरकारी स्कूल से पूरी की. एक दिन वो ख़ालसा कॉलेज में थियेटर देखने गए थे तब ओमप्रकाश पुरी को थियेटर में रुचि आने लगी. तो उन्होने पंजाब के लोकल थियेटर पंजाब कला मंच से जुड़ गए. फिर उन्होने नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा(एनएसडी) में दाख़िला ले लिया. एनएसडी में उनके दोस्त नसरुद्दीन शाह थे. एडमिशन तो ले लिया लेकिन अपनी अंग्रेजी कमजोर होने की वजह से वहाँ से निकलने का सोचने लगे. तब इब्राहिम अल्का ने पुरी को कहा कि तुम हिन्दी में ही बात करो. फिर उसके बाद ओमप्रकाश पुरी धीरे-धीरे अंग्रेजी भी सीखने लगे. एनएसडी के बाद पुरी वो ‘फिल्म एंड टेलीविजन इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया’ से एक्टिंग का कोर्स करने के बाद मुंबई चले गए.

ओमप्रकाश ने सिनेमा जगत में आने पर अपने नाम को ओम पुरी से बदल लिया था. साल रहा 1976 उस साल ओम पुरी ने अपनी पहली फिल्म में काम किया. फिल्म का नाम घासीराम कोतवाल था जो 1972 में आये मराठी प्ले पर बनी हुई थी. ये फिल्म मराठी में बनी थी.
ओमप्रकाश ने कला फिल्मों (थियेटर फ़िल्म्स) से लेकर टेलीविजन, हिन्दी फिल्मों और हॉलीवुड की फिल्मों तक का सफर किया था. फिल्मों में वह कॉमेडी हो या इमोशन, ओम पुरी जो भी किरदार निभाते, उसमें जान डाल देते थे. बॉलीवुड में ओम पुरी ने आस्था, डर्टी पॉलिटिक्स, अर्ध सत्य, चाइना गेट, आक्रोश, जाने भी दो यारो, गांधी, बजरंगी भाईजान, घायल, प्यार तो होना ही था, नरसिंहा, डॉन-2, सिंह इज किंग, माचिस, चाची 420, रंग दे बसंती, दिल्ली-6 और पार जैसी बेहतरीन फिल्मों में काम किया. ट्यूबलाइट उनकी आखिरी फिल्म थी. इस फिल्म की शूटिंग के दौरान ही उन्हें हार्ट अटैक आया था.
साल 1981 में आई फिल्म आक्रोश के लिए उनको सपोर्टिंग एक्टर के लिए फिल्मफेयर अवॉर्ड से सम्मानित किया गया. इसके अलावा आरोहण और अर्ध सत्य के लिए नेशनल अवॉर्ड भी मिले. इसके साथ ही उन्हे 1990 में पद्मश्री और 2004 में ऑर्डर ऑफ ब्रिटिश इम्पायर से भी नवाजा गया है.

2009 में नन्दिता ने ओम पुरी के ऊपर एक किताब ‘अनलकी हीरो:द स्टोरी ऑफ ओम पुरी’ लिखी थी, उस किताब में नन्दिता ने ओम पुरी की पुराने संबंधों की सारी बाते ऐसी बेबाकी से लिखी थी कि ओम पुरी ने नन्दिता को डांट दिया था. 2013 में नन्दिता ने ओम पुरी के खिलाफ घरेलू हिंसा का आरोप लगा दिया था जिसके चलते उनका तलाक हो गया था.

चेहरे पर खड्ढे होने की वजह से ओम पुरी को कुछ लोगो ने बोला भी था कि वो हीरो नहीं बन पाएंगे. लेकिन अपने अभिनय के चलते उन्होने देश ही नहीं विदेशो में भी अपने नाम सबके जुबान पर लाने के लिए मजबूर कर दिया था. 1991 में ओम पुरी ने अभिनेता अन्नु कपूर की बहिन डायरेक्टर और लेखक सीमा कपूर से शादी की थी लेकिन उनकी शादी बाद 8 महीने ही चल पाई थी. उसके बाद 1993 में ओम पुरी ने महिला पत्रकार नन्दिता पुरी से शादी की. उन दोनों से उनके एक बच्चा ईशान पुरी है. लेकिन ये शादी भी कुछ ख़ास चली नहीं 2013 में दोनों अलग हो गए थे. ओम पुरी की मृत्यु 6 जनवरी 2017 को हार्ट अटैक आने की वजह से हुई थी.
